पर्यावरण दिन

जहॉं तक भारत का सवाल है, “आमलोगों की, आमलोगों से आयी हुई, आमलोगों के लिए सरकार !”…..इस लोकतंत्र की बुनियादी संकल्पना से तो हमारी चुनाव प्रक्रिया शुरु से ही काफी हदतक दूर थी। लेकिन, आमतौरपर राजनैतिक प्रशासन स्वतंत्रता के बाद लोगों के प्रति काफी हदतक संवेदनपूर्ण था। लेकिन जैसे जैसे समय गुजरता गया, और लोग तथा राजनैतिक नेतागण लोकतंत्र के ‘तंत्र’ के बारे में वाकिब होते गये……वैसे वैसे चुनाव प्रक्रिया संघटित रुप से अपने मूलस्वरुप से दूर होने लगी और धन, बाहुबली तथा जातसंप्रदायवादी राजनिती, सभी किस्म के चुनावों में हावी होने लगी। इस के फलस्वरुप राजनिती और भारतीय प्रशासन भ्रष्ट, अन्यायपूर्ण तथा संवेदनशून्य बनता चला गया।

१९९०-९१ के बाद, जैसे की हमसब जानकारी रखते है, निजीकरण, जागतिकीकरण, उदारीकरण का दौर के चलते हुए मानो बचेबुचे लोकतंत्र की अर्थी, इस देश में सरेआम उठायी गयी। गये ३१ साल से भी जादा कामगार क्षेत्र से जुडा हमारा निजी अनुभव इस बात का प्रमाणमात्र है! सिर्फ दिखावे के लिए, ‘कामगार’ लब्ज आगे जोडा जाता है, लेकिन वास्तविकता में ना कोई कानून, ना कोई न्यायालय, ना कोई सरकारी खाता कामगारों के हित में होता है…… ये आमतौर पे, सब पूँजीवादीयों के दलाल मात्र होते है।

आमतौर पर जिस तरह ठेका-कामगारकर्मी का उद्योग और सेवाक्षेत्र में प्रयोजन किया जा रहा है, वो पूरीतरह ना सिर्फ बेकानूनी है, मगर भारतीय घटना के न्यायिक और समानतापूर्ण व्यवहार के मूलरुप के ढॉंचे से अवरुद्ध है। ठेका-कामगारनिती(contract-labour) ये आज के दौर की नयी गुलामियत और नया अछूतापन का घिनौना व्यवहार है!

जो भी किमान-वेतन, प्रॉविडंड फंड, ग्रॅच्यूईटी जैसे बुनियादी तौर के कानून पर अमल ना करना, किमान-वेतन न्यूनतम रखना, ठेका-मजदूरी का बेकानूनी अवलंब करना, कामगारों का कही भी तबादला करने का व्यवस्थापन को अनिर्बंध स्वरुप का हक प्रदान करना, कारखानों को कहीं भी और कभी भी ऊठाके लेके जाने की (flight of capital) कानूनी इजाजत पूंजीवादियों को देना…… ये सारे लोकतंत्रविरोधी दुर्व्यवहार १९९० के बाद के छोटे कालखंड में, वर्कर्स-मुवमेंट को खत्म करने-करवाने के ही नापाक इरादों से जारी किये गये।

परिणामस्वरुप, कामगारकर्मी जो भारतीय समाज का बहुत बडा हिस्सा है, उसके लोकतांत्रिक हक छिने गये है, उसका जिना हराम किया गया है। लोकतंत्र की सिर्फ चुनाव के नाम के लिए पेशकश होती है, जहॉं वोट खुलेआम खरीदे जाते है। समाज के विभिन्न हिस्सो में इस ‘अलोकतांत्रिक’ व्यवहार का फिलहाल जो दर्शन हो रहा है, वो पुंजीवादियों का संघटितरुप का इस देशपर अमल चालू है, जिसे ‘कार्पोरेटोक्रसी’ कहा गया है।

इस देश से ना सिर्फ गुंडो के जरिये लोगों का अपहरण होता है, अब के तो पूरे “लोकतंत्र” का ही राजनीतिकवर्ग, सरकारी अधिकारीवर्ग और पुंजीवादियों के गठबंधन ने अपहरण करके उसे अपना बटिक बनवा लिया हैं…..यहॉंतक कि इस देश का चालचलन एक “व्हॅंपायर-स्टेट” में तब्दिल हो गया है, जिसमें देशकी धनदौलत और प्राकृतिक संसाधन का राजसत्ता से जुडे हुए गिनेचुने लोग अविरत रुप से शोषण करते कहते है।

देहाती इलाकों से किसान और भूमिहार मजदूरों को खेतीबाडी से उखाडा जा रहा है (Depeasantisation) तारिक शहरे में सस्तें और ठेका मजदूरों की(Flexible-Labour) अनधिकृत बस्तींयों में भरमार हो, ताकि GDP बढाने का इकॉनामिक ग्रोथ-इंजिन उच्चतम मध्यमवर्ग के लिए दौडता चला रहे। प्राकृतिक शोषणद्वारा पर्यावरण विनाश और अमानुष माननीय शोषण करनेवाला पूंजीवाद, पूरे भारतवर्ष में ‘लोकतंत्र’ का हथियारा साबित हो चुका है…….और दुनिया के अनेको देशों में, विशेषकर आशियाई देशों में, यहीं दुर्भाग्यपूर्ण स्थिती का सामना करना पड रहा है।

इसलिये लोकतंत्र मजबूत बनाने के मकसद के लिए, आम दुनिया के वामपंथी दल और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम करनेवाले सभी अभिजन तथा संस्थाओं को मिलजुल के काम करना होगा……अन्यथा, आनेवाले कल में कथित पुंजीवाद निहित ‘विकास’ के बजाय, मानवजातसहित सभी जिवितसृष्टी के संपूर्ण विनाश का डर सर पे मंडरा रहा होगा……जिस के दुःश्चिन्ह हम आज ही देख रहे है।

तो, आओ हम सब मिल के पुंजीवाद को उखाडफेक, भ्रष्टाचार को समाप्त कर के, अमर्याद रुप से बढती जनसंख्या को कठोरता से रोक लगा के और प्रकृति-पर्यावरण को क्षतिग्रस्त करनेवाली भोगवादी जीवनशैली को मिटा के…….इस वसुंधरा की रक्षा करे !!!

                                                    … राजन राजे

(अध्यक्ष- धर्मराज्य पक्ष, धर्मराज्य कामगार-कर्मचारी महासंघ)